सफलता की राह में ख़ुद हमारी अपनी आदतें रुकावट करती हैं। एक छोटी-सी सूची है, जरूर पढ़ें।
सफलता की राह में ख़ुद हमारी अपनी आदतें रुकावट करती हैं। एक छोटी-सी सूची है, जरूर पढ़ें।
चंद चेतावनियां होती हैं, जिन्हें ध्यान से देख-समझ लेना ही चाहिए। खासतौर पर तब जब उनका ताल्लुक उन आदतों से हो, जिन्हें लत का रूप धरने में जरा भी वक़्त नहीं लगता । हम देर तक सोने, आलस, आरामतलबी या मोबाइल में उलझे रहने को ही लत नहीं मान सकते। और भी हैं, जो आगे बढ़ने या सफलता हासिल करने से रोकती हैं।
काम या किसी पहल को करने के 'सही समय का इंतजार' करने की भी लत होती है। कभी लगता है, थोड़ा पैसा और जुटा लें या कुछ जानकारी और ले लें, तब शुरू करेंगे। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर 70 फ़ीसदी संसाधन भी जुट गए हैं, तो शुरुआत की जा सकती है। दूसरी बुरी लत है तुलना में उलझ जाना। फलां की देखा-देखी में जल्दबाजी करना, उनकी तरह के तौर-तरीके अपनाना जहां ख़ुद की पहल की नवीनता खोता है, वहीं एक तरह की असंतुष्टि सदा घेरे रहती है। काम को अधूरा छोड़ देने की भी आदत पैर जमा लेती है। इसे लोग ख़ुद का उत्साही स्वभाव कहते हैं। 'हम जल्दी से कुछ और कर लेंगे, तो कामयाब हो जाएंगे' सोचकर पहले के काम को अधूरा छोड़ने का बहाना खोज लेते हैं। लेकिन इसे एक तरह से मैदान छोड़ना ही कहा जाएगा। और जो मैदान ही छोड़ दिया तो जीत या सफलता की उम्मीद ही कहां रहेगी। इससे ठीक विपरीत एक आदत है, जो इससे भी कहीं नुक़सानदेह है। वो है कई काम एक -साथ करने की कोशिश। पूरे समर्पण से केवल एक काम किया जा सकता है। हाथ दो हैं हमारे लेकिन दिमाग़ एक ही है, जो एक वक़्त में एक ही काम में लगाया जाए, तो अच्छे नतीजे देता है। एक साथ कई काम करने वाले गिनती बढ़ा सकते हैं, गुणवत्तां नहीं, जो कामयाबी का सबसे बड़ा मापदंड है।
अब आते हैं उस आदत पर, जिसे लत की शक्ल अख़्तियार करने में सबसे कम वक़्त लगता है। ज़रा- सा बढ़ावा मिला नहीं कि यह आदत पक्की हो जाती है - वो है शिकायत करना। कामयाबी की राह में इससे बड़ा रोड़ा नहीं हो सकता। ध्यान भटका लेना एक और लत है, जिसमें मोबाइल बहुत मददगार है। काम के बीच में सोशल मीडिया का बुलावा हो या किसी का फोन, कीमती समय को पंख लगाने के रास्ते ख़ूब मिल जाते हैं। और सबसे आख़िर में बात करते हैं, कल्पना की दुनिया में खो जाने की लत की । मन बड़े सजीले गोटे लगा लेता है उस सफलता के पैरहन पर, जो अभी मिली ही नहीं। ख़ुद ही सजता है, ख़ुद ही ख़ुश हो लेता है। ये सारी आदतें यूं भी नुकसानदेह हैं और लत का रूप ले लें, तो बेहद घातक। इनसे बचकर रहने के लिए, इनकी अवहेलना करना ही इकलौता उपाय है।
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