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माता-पिता और बच्चों के बीच का संबंध कैसे मज़बूत करें? how to overcome the dosconnect between parents and children.

माता-पिता और बच्चों के बीच का संबंध कैसे मज़बूत करें?

 how to overcome the dosconnect between parents and children

माता-पिता और बच्चों के बीच का संबंध कैसे मज़बूत करें?


आज कल किशोर घर के बाहर क्या करते हैं, किससे मिलते हैं और उनकी जिंदगी में क्या चल रहा है, ये सब माता-पिता से साझा ही नहीं करते। यदि उनकी उदासी या हाव-भाव देखकर अभिभावक यह जान भी लें कि 1. बच्चे किसी बात से परेशान हैं तो भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती। वो अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लेते हैं या कह देते हैं कि आप नहीं समझ पाओगे।


इस समय अभिभावकों के लिए यह सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। बच्चे उन पर विश्वास नहीं करते हैं। और उन्हें लगता है कि माता-पिता उनको समझ नहीं पाएंगे।


पहले माता-पिता जानें कि उनकी तरफ से ऐसा क्या होता है, जिस पर बच्चों को सख्त आपत्ति होती है।


• बच्चों की व्यक्तिगत या संवेदनशील बातें दूसरों के साथ साझा कर देना ।


• जब बच्चा भरोसा कर मां से अपनी निजी बातें साझा करता है और मां उसके पिता को बता देती है।


बच्चों का सामान देखकर, उनके मोबाइल फोन के मैसेज या निजी डायरी पढ़कर दखल देना। उन पर भरोसा नहीं करना, हर छोटी बात पर उन पर शक करना।


• अगर उनका कोई राज जानते हैं तो उसका इस्तेमाल काम निकालने या कोई बात मनवाने में करना।


उनकी भावनाओं को अमान्य या छोटा करना, या उन्हें यह कहना कि वे अत्यधिक प्रतिक्रिया दे रहे हैं यानी वो ओवररियेक्ट कर रहे हैं या बेकार में ही अति संवेदनशील हैं।


•. जब बच्चे अपनी समस्या साझा करें तो उन परिस्थितियों के लिए उन्हें ही दोष देना, उनकी आलोचना करना या उन्हें ही सजा देना।


जब बच्चे कोई समस्या लेकर आएं तो व्यस्त या भावनात्मक रूप से अनुपलब्ध बच्चे की बात ध्यान से सुनें


1 किशोरों को लगता है कि आप उन्हें समझते नहीं हैं इसलिए उनकी समस्या भी नहीं समझेंगे। जब बच्चे आपके पास कोई समस्या लेकर आते हैं, तो उन्हें सिर्फ सुनें। उनकी बात काटकर अपनी सलाह न दें। परी बात सुनें और फिर उनसे पूछें कि 'क्या तुम मुझसे इस पर सलाह चाहते हो?" उनके जवाब के • अनुसार बात को आगे बढ़ाएं। अगर वे भोजन के समय सामान्य बात भी करते हैं तो दिलचस्पी लेकर सुनें। लेकिन हमेशा बात करने के लिए दबाव न डालें।


2 व्यवहार में बदलाव लाएं


बच्चों को आपसे बातें छुपाना पसंद नहीं है, यह तो सीखा हुआ व्यवहार है। यदि उन्होंने अतीत में आपसे खुलकर बात की है और उन्हें इसके परिणाम भुगतने पड़े हैं, तो उन्होंने उस अनुभव के आधार पर ही आपसे कुछ नहीं बोलना सीख लिया है। फिर आप उन्हें आंखें बंद करके विश्वास कर लेने को नहीं कह सकते, विश्वास आपको फिर से बनाना होगा। इसके लिए बच्चों को छोटी-छोटी बातों पर डांटना बंद करें। अगर आपकी उनकी ग़लती नजर आती है तो प्यार से बात करें और समझाएं। ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चे खुद खुलकर अपनी बात रख सकें।


आजादी भी जरूरी है


3 कुछ माता-पिता बच्चों को अकेला नहीं छोड़ते। इतना लाड़-प्यार करते हैं कि बच्चे चिड़चिड़ाकर उनसे दूर भागने लगते हैं। उनके कामों में दखल देते हैं, दोस्तों के साथ समय बिताने नहीं देते और हमेशा आंखों के सामने रखना चाहते हैं। इससे बच्चे और दूर होते जाएंगे। इन सबसे उन्हें थोड़ी आजादी दें। दोस्तों के साथ समय बिताने दें, घर में भी थोड़ा स्पेस दें। इतनी आजादी मिलने के बाद बच्चे खुद आपके कहे का पालन करेंगे।


वादा निभा सकें तो ही करें


4 जब किशोर अभिभावक से किसी वस्तु की मांग करते हैं या कोई इच्छा जताते हैं तो माता-पिता उस पल के लिए हां कह देते हैं। परंतु समय आने पर - अपने वादे से मुकर जाते हैं। ऐसा दो-तीन बार होने पर उनका विश्वास हटने लगता है और इसलिए उनके व्यवहार में भी बदलाव आने लग जाता है। बच्चे से तभी वादा करें जब उसे पूरा करना चाहते हैं या कर सकते हैं। आप जितना अपने वादे पर क़ायम रहेंगे, बच्चे का विश्वास आप पर उतना ही बढ़ेगा।


थोड़ा उनकी तरह बनें


5 किशोरों का विश्वास जीतने के लिए उनको समझना जरूरी है। उनकी जरूरतों को समझें। यह उम्र जोखिम उठाने, प्रयोग करने और नियमों को तोड़ने के लिए उकसाती है। यह उम्र के कारण है, बच्चे का स्वभाव नहीं है, इस बात को समझें। बच्चे के क्रियाकलापों को उसके व्यक्तित्व के दोष या इल्जाम की तरह इस्तेमाल न करें।


उनकी पसंद में दिलचस्पी दिखाएं, जैसे वीडियो गेम, घूमना, फोटोग्राफी, उनकी पसंद की फिल्म या खाना आदि। उन्हें पास्ता पसंद है तो घर में बनाएं या उनके दोस्तों को भी घर पर बुला सकते हैं। उनके जीवन के जो पहलू आप संवारना या बदलना चाहते हैं, उनका स्वस्थ पक्ष सामने रखें, और हो सके तो उनके दोस्तों को भी शामिल करें।


रखें कि आपको कहां अभिभावक बनकर केवल याद देखना है, ध्यान रखना है, मदद करनी है और कहां दोस्त बनकर उनकी गतिविधियों में शामिल होकर उनका मार्गदर्शन करना है। दूरियां दूर हो जाएंगी।

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