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फैसले सही न निकलें, तो क्या करें ? what to do if decisions do not turn out right.

 जिंदगी में बड़े फैसले कैसे लें? और तब क्या करें, जब वे फ़ैसले गलत साबित हो जाएं?


फ़ैसले लेने के अवसर हम सबकी जिंदगी में हर लम्हे, हर दिन आते रहते हैं। कौन-सा फ़ैसला बड़ा है, कौन-सा छोटा - यह तय करना मुश्किल है। हम आमतौर पर मानते हैं कि विद्यार्थी के रूप में उच्चतर माध्यमिक स्तर की पढ़ाई में कौन-सा विषय चुना जाए, यह एक बड़ा फ़ैसला है, तो बाद में कौन-सा कॉलेज चुनें, कहां और कैसी नौकरी करें - ये सवाल सामने खड़े हो जाते हैं, जिन्हें हम बड़ा मानते हैं। फिर शादी किससे करें, कैसी शादी करें, कैसे निबाहें... जिंदगी की राह पर न तो मोड़ों की कमी है और न ही निर्णय लेने की चुनौतियों की।


अब आप सोचिए कि जो भी फ़ैसले आमतौर पर इंसान लेते हैं, उनमें से चुनिंदा ही बेहद सफल, पैसे वाले या शोहरत हासिल करने वाले बन पाते हैं। तो इस तरह से देखें तो शेष सबके फ़ैसले क्या ग़लत हुए ?


तुलना सही-ग़लत का मापदंड नहीं है।


फ़ैसला महज एक विकल्प चुनना है। उसे सकारात्मक आप कैसे बनाते हैं, उसे कैसे संभाले रखते हैं, उसके साथ खुश रहने की हर चंद कोशिश करते हैं, यह मायने रखता है। हर इंसान उजाले चुनता है, लेकिन अगर कभी रोशनी कुछ कम हो जाए या अंधेरा ही हो जाए, तो इसमें उस क्षण के फ़ैसले का कोई दोष नहीं। चंद तरीके हैं सुझाव के पिटारे में


उतार-चढ़ाव न आएं, तो जीवन के इस सफ़र की का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। सबका स्वभाव, परेशानियों का सामना करने का ढंग अलग होता है। जो जानते हैं कि यह मुश्किल सदा की नहीं है, या सदा रहने नहीं दी जाएगी, वो कमर कसकर उसका सामना करने को उठ खड़े होते हैं। यह फैसलों का सामना करने का एक तरीक़ा है, गर वो गलत साबित हो जाएं


तालमेल का अभाव, सामंजस्य की कमी मन को दुखी कर देती है। ऐसे में संवाद से हल ढूंढें, अगर वो संभव न हो पा रहा हो, तो अपने ढंग से स्थितियों को बदलने की कोशिश या फिर अपने ही नजरिए को अपने हित में सकारात्मक रखने का प्रयास मददगार साबित हो सकता है। मिसाल के तौर पर, कुछ लोगों को समझ पाना, उनकी उलझी सोच के साथ तालमेल बैठाना नामुमकिन प्रतीत होता है, तो ऐसे में लगातार उनको टोकना, उनमें परिवर्तन लाने की असंभव कोशिश करना आपको नकारात्मक बनाए रखेगा। बेहतर होगा कि ख़ुद के जीवन पर ध्यान दें। जैसे आप किसी छोटे दरवाजे से झुककर निकलते हैं, यह कुछ वैसा ही है।


3 हालात दिनक़त भरे होते हैं,

तो उदासी  हालात है दिक्कत में हर पल घेरे जब रोज किसी न किसी जगह उन लोगों से मिलते हैं, जो कमोबेश ठीक-ठाक जीवन जी रहे हैं, तो और नकारात्मकता आती है। तब बहुत कोशिश करते हुए ख़ुद से कहते हैं, 'मैं भी ख़ुश होऊंगी, जब यह मुश्किलों वाला दौर गुजर जाएगा।' अपने इस प्रेरणा वाक्य को बदल दीजिए और कहिए, 'मुश्किलों का दौर होते हुए भी मैं ख़ुश रहने के अवसर खोजूंगी।'


हर फ़ैसला किसी स्थिति में बदलाव लाने की भूमिका निभाता है। बदलाव एकरसता तोड़ते हैं, तो इस लिहाज से अच्छे कहे जाएंगे। इनका आना या लाया जाना, हितकर ही होगा, यही सोच होती है, तो इनका स्वागत किया जाना चाहिए। और जो कभी हित में न भी निकले, तो भी यह इत्मीनान रखा जा सकता है कि फ़ैसलों का कोश कभी खाली नहीं हो सकता।

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