काम खूब करे लेकिन अभिमान को दूर रखकर, रहीम।
दुनिया में अंधेरा भी कई प्रकार का होता है। सबसे खतरनाक अंधकार अभिमान का होता है। मनुष्य जब अभिमान में डूबता है तो आसपास में एक ऐसा अंधकार छा जाता है जिससे वह उचित और सत्य को देख नही पता। अभिमानी को लगता है मेरा व्यक्तित्व रोशन है, मैं जगमगा रहा हु, इस भर्म में वह अभिमान से लिपट रहता है। भले ही शरीर जगमग हो जाए, लेकिन अभिमान के कारण जीवन रोशनी पा नही सकता। इसलिए जो भी करे अभिमान से मुक्त रहकर करे। हमारी जो शक्ति अभिमान से अहंकार में लगती है अगर अभिमान खत्म कर दिया जाए तो वह संकल्प में चली जायेगी और काम करना आसान हो जायेगा। और हमें अभिमान क्यों नही करना चाहिए, सीखे संत रहीम दास जी के इस वाक्य से >
रहीम और गंग में बहुत गहरी मित्रता थी। रहीम जब भी कुछ दान देते थे तो अपनी नजर नीची कर लेते थे। गंग को यह बात अच्छी नहीं लगती थी। और एक दिन वे रहीम से पूछ लिए की आप जब भी दान देते हो तो नीचे नजर क्यों कर लेते है।
इस पर रहीम ने जो उतर दिया वह सत्य है,
रहीम कहते है >
दोहा > देनहार कोई और है, देवत है दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें, याते नीचे नैन॥
अर्थात - देने वाला तो कोई और है जो दिन रात दे रहे हैं। लेकिन लोग समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ, इसलिये मेरी आँखें अनायास ही शर्म से झुक जाती हैं। दे कोई और रहा है, मैं तो सिर्फ जरिया हूं।
दान देते समय या किसी की मदद करते समय हमारे मन में अभिमान नहीं बल्कि नम्रता का भाव होना चाहिए।
रहीम का मानना था कि :
दोहा > रहिमन गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं।
आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं॥
जहां अभिमान है वहां प्रभु का निवास नहीं हो सकता। इसलिए काम खूब करे लेकिन अभिमान को दूर रखकर।
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