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दुखी मन की पीड़ा को भी आनंद में बदल सकते है | सुविचार

दिल की पसंद पूरी हो जाए ये सबको नसीब नही होती। जिनकी पनाह में हम रहते है, यदि उन्ही का विरह हो जाए तो पीड़ा और भड़ जाती है। मन हमारा बहुत दुखी हो जाता है। इसलिए हमें ये जानना जरूरी है की उस समय हमें ऐसा क्या करना चाहिए जिससे दुखी मन की पीड़ा को आनंद में बदल सके। यहां वही पल याद करते जिससे आप अगर दुखी है तो क्या करे जो आनंद की प्राप्ति हो सके।


भरत को श्रीराम के आने की खबर मिल चुकी थी, की श्रीराम भरत से मिलने आने वाले है इसलिए भरत बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
यहां तुलसीदास जी ने लिखा >
दोहा > रहेउ एक दिन अवधि आधार,
          समुझत मन दुख भयउ अपारा।
          कारन कवन नाथ नही आवउ,
          जानू कुटिल किधो मोहि बिसरायउ।

अर्थात > एक ही दिन शेष है, यह सोचकर भरत के मन में अपार दुख हुआ की राम क्यों नही आए। कही कुटिल समझकर मुझे भूल तो नहीं दिया। इसलिए उनका मन बहुत दुखी हुआ। कहते है विरह में पीड़ा और भय दोनो उतर आते है। जब हम किसी से दूर हो जाते है, किसी की राह देख रहे होते है तब पीड़ा तो होती ही रहती है साथ साथ कई तरह के भय और नकारात्मकता भी आ जाती है। जिससे दुखी मन की पीड़ा भड़ती जाती है।
फिर कुछ देर बाद भरत ने स्कारात्मक सोचा >
दोहा > मोरे जिय भरोस दृढ़ सोई।
          मिलिहही राम सगून सुभ होई।।

अर्थात > मेरे हृदय में पक्का भरोसा है की राम अवश्य ही आने वाले है। मन बाहर की ओर देखे तो नेगीतिविटी पैदा करता है और भीतर देखे तो पॉजिटिविटी पैदा करता है। इसलिए जब किसी भी कारण मन दुखी हो, इंतजार कर रहा हो, तो विचारों को ही खो देना चाहिए। मन में विचार ही न हो यानी निशब्द जाते है तो यही से शांति सुरु होती है। जीवन में स्थितियों की ओर व्यक्तियों की प्रतीक्षा सबको करनी पड़ती है, लेकिन आप शांति से प्रतीक्षा करे तो दुखी मन की पीड़ा को भी आनंद में बदल सकते है | सुविचार

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