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आलोचना का सबसे अच्छा जवाब ऐसे दिया जाता है | रतन टाटा

आलोचना का सबसे अच्छा जवाब ऐसे दिया जाता है | रतन टाटा 


संसार में हम ऐसे लोगो से घिरे है, जो विकास की यात्रा में चेतना के विभिन्न स्तरों पर संघर्ष कर रहे। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है की कुछ लोग हमे आहत करेंगे, हमारी आलोचना करेंगे या हमारे ध्येय पवित्र होने के बावजूद हमारा बुरा करेंगे। 


ऐसे में हमे रतन टाटा से प्रेरणा ले की आलोचना का सबसे अच्छा जवाब ऐसे दिया जाता है।
वर्ष 1991 में टाटा मोटर्स के चेयरमैन के रूप में रतन टाटा ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। वे एक स्वदेशी कार बनाना चाहते थे। इसी के परिणामस्वरूप इंडिका लॉन्च की गई। इसमें कोई इंपोटेंड टेक्नोलॉजी इस्तेमाल नहीं की गई थी। लेकिन एक वर्ष बाद ही 1998 में उन्हें लगा कि यह एक फलदाई परियोजना नही है और इसे बेचने का मन बनाया। फोर्ड मोटर्स ने इस कार फैक्टरी को खरीदने में रुचि दिखाई। रतन टाटा अपने पूरे बोर्ड के साथ डेट्रयट गए और फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिले। बिल फोर्ड ने कार व्यवसाय के लिए टाटा का अपमान किया। टाटा ने गरिमापूर्ण चुप्पी कायम रखी, डील कैंसल की ओर भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने अपना फोकस मोटर लाइन में लगा दिया और इस क्षेत्र में एक विश्वस्तरीय व्यवसाय स्थापित किया।
इसके बाद समय का पहिया ऐसा चला की 2008 की मंदी में फोर्ड मोटर्स दिवालियापन की कंगार पर आ गई। उनकी प्रीमियम सेंगमेट कारे जेगुआर, लेड रोवर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही थी। फिर टाटा मोटर्स ने उन्हें खरीदने का प्रस्ताव रखा। बिल फोर्ड बातचीत के लिए बम्बई आए और कहा की टाटा उनसे ये कारे खरीदकर उनपर अहसान कर रहे है।
टाटा चाहते तो बिल फोर्ड का अपमान का बदला ले सकते थे। लेकिन वे चुप हो रहे। वे लकीर छोटी करने के बजाए लकीर को बड़ी करने में यकीन रखते थे।
अगर किसी ने आपको चोट पहुंचाई है तो सबसे अच्छा यही होगा की पहले से बेहतर मनुष्य बन जाइए। यही आलोचना का सबसे बेहतर जवाब होगा।

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