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महावीर स्वामी की जीवनी | Mahavir Swami Biography Hindi

 महावीर स्वामी की जीवनी | Mahavir Swami Biography Hindi



जन्म

भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ई.पू .वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ था। महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्धमान था, लेकिन जैन साहित्य में उन्हें ‘महावीरऔरजिन नाम से भी पुकारा गया है। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो क्षत्रिय वंश से संबंध रखते थे और उनकी माता का नाम त्रिशला था। जो वैशाली के लिच्छवी वंश के राजा चेटक की बहन थी। जैन ग्रंथों के अनुसार 23 नेतृत्व कर पार्श्वनाथ के मोक्ष प्राप्त करने के 188 वर्षों के बाद इनका जन्म हुआ था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्तमान वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे 5 नामों का उल्लेख है।

राजकुल में जन्म लेने के कारण वर्धमान का प्रारंभिक जीवन अत्यंत आनंद और सुखमय व्यतीत हुआ। बड़े होने पर उनके माता-पिता ने उनका विवाह एक सुंदर कन्या यशोदा से कर दिया। कुछ समय के बाद उनके घर में एक कन्या ने जन्म लिया जिसका नाम प्रियदर्शना अथवा आणोज्जा रखा गया। युवावस्था में इस कन्या का विवाह जमाली नामक युवक से किया जो बाद में महावीर स्वामी के अनुयायी बने।

ज्ञान की प्राप्ति

महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु तक गृहस्थ जीवन व्यतीत किया। परंतु सांसारिक जीवन से उन्हें आंतरिक शांति न मिल सकी। जिसके कारण अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने बड़े भाई नंदीवर्धन से आज्ञा लेकर 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर दिया और सन्यासी हो गए। उन्होंने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की। इस अवधि में उन्हें अनेक कष्ट उठाने पड़े। स्वामी महावीर ने दिगंबर साधु की कठिन अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। श्वेतांबर संप्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। उनके अनुसार महावीर दीक्षा के उपरांत कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगंबर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। जब वे ध्यान मग्न रहकर इधर-उधर घूमते थे तो लोग उन्हें डंडों से पीटते थे, परंतु फिर भी वे पूर्ण रूप से मौन और शांत रहते थे। उन्होंने अपने शरीर के जख्मों को ठीक करने के लिए औषधि तक का भी प्रयोग नहीं किया था।

इस प्रकार वर्धमान अपार धीरज के साथ अपनी तपस्या में 12 वर्ष 5 माह और 15 दिन तक लीन रहे और 13 वर्ष में वैशाखी की दसवीं के दिन उन्हें कैवल्य अर्थात ज्ञान प्राप्त हुआ। जैनियों के अनुसार उन्हें मनुष्य, देवता, जन्म-मरण, इस संसार तथा अगले संसार का ज्ञान प्राप्त हो गया था। इंद्रियों पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली और वे ‘जिन’ तथामहावीर के नाम से पुकारे जाने लगे और वे बंधन हीन हो गए। अतः निर्ग्रन्थ माने जाने लगे। उस समय महावीर की आयु लगभग 42 वर्ष की थी।

ज्ञान प्राप्ति के बाद आगामी 30 वर्ष महावीर स्वामी ने अपने ज्ञान और अनुभव का प्रचार करने में बिताए। उनके धर्म प्रचार के मार्ग में आने कठिनाइयां आई। फिर भी वे अपने प्र्यत्न में लगे रहे। दुष्ट, अनपढ़, असभ्य तथा रूढ़िवादी लोग उनका विरोध करते थे। परंतु वे उनके दिल को अपने उच्च चरित्र और मधुर वाणी से जीत लेते थे। कभी भी उन्होंने अपने विरोधियों से भी बेर भाव ना रखा। जनसाधारण लोग उनसे अत्यधिक प्रभावित होते थे,और धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या काफी बढ़ गई।

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