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महावीर स्वामी के उपदेश | Teachings of Mahavir Swami In Hindi

 

महावीर स्वामी के उपदेश Teachings of Mahavir Swami In Hindi

भगवान महावीर स्वामी


भगवान महावीर स्वामी' आजीवन कठिन तपस्या की और वैराग्य को आत्मसात किया। जिसके बाद उन्हें ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हुई। ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद उन्होंने लोगों के विचारों को बदलने का भरपूर प्रयास किया।

अपने उपदेशों के माध्यम से उन्होंने जनमानस का परिष्कार किया। स्वामी महावीर के उपदेशों में 5 सिद्धांतों को शामिल किया जाता है। जिसे पंचशील सिद्धांत भी कहा जाता है।

महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांतों में सत्य, ब्रम्हचर्य, अहिंसा, अपरिग्रह ( जमाखोरी ना करना), अस्तेय को शामिल किया जाता है। माना जाता है कि इन्ही सिद्धांतों पर पूरा जैन धर्म टिका हुआ है।

जैन संप्रदाय में पांच व्रतों का उल्लेख मिलता है। सत्य के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि सत्य ही भगवान का स्वरूप है। जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है वह इसे जल्दी समझ लेता है।

अहिंसा के लिए वे कहते हैं कि किसी भी जीव के लिए निर्दयी मत बनो। उनकी हिंसा मत करो। उनको उनके रास्ते से मत रोको सबके लिए दया भावना रखो।

अचैर्य या अस्तेय पर उन्होंने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को बिना आदेश के किसी के भी सामान को छूना नहीं चाहिए। इसे जैन ग्रंथों में चोरी करना कहा गया है।

अपरिग्रह के लिए स्वामी महावीर का कहना था कि जो व्यक्ति सजीव व निर्जीव तत्वों का संग्रह करता है उसे दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता।

ब्रम्हचर्य के बारे में वे बहुत ही अमूल्य ज्ञान देते हैं वे कहते हैं कि बिना ब्रम्हचर्य किसी भी प्रकार की तपस्या, ध्यान, दर्शन, संयम की उपयोगिता न के बराबर है। 

इसके अलावा वे क्षमा को सबसे अच्छा संकल्प तथा अहिंसा और संयम को सबसे अच्छा तप मानते थे। महावीर जी कहते हैं जो असली धर्मात्मा है उनके मन में सदा धर्म निवास करता है जिन्हें देवता भी नमस्कार करते हैं।

ज्ञान प्राप्ति के बाद जन समूह में से बहुत से व्यक्तियों ने आगे आकर अपना जीवन दान करने का निर्णय लिया। जिसके बाद वह पूर्ण रुप से महावीर के शिष्य हो गए। महावीर के उपदेशों को आगे चलकर उनके शिष्यों ने पूरी दुनिया में फैलाया।



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