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कुष्ठ रोगियों में आशा की ज्योति जगाने वाली देवी की कहानी -motivational story in hindi.

कुष्ठ रोगियों में आशा की ज्योति जगाने वाली देवी की कहानी.

The story of the goddess who lit the light of hope in leprosy patients.


मन में सर्वजन हिताय सर्वजनसुखाय हेतु कुछ करने के लिए उमंग जगने भर की देर है-सारी संकीर्णता स्वयं पल्ला छुड़ाकर भाग जाती है । यह अनुभूति है मेरी रोड की, जो १८८४ में अमेरिका से भारत आयीं । यहाँ पिथौरागढ़ के पास चन्दन कुण्ठ आश्रम को उन्होंने अपना कार्य अंग बनाया। पहली बार जाने पर उन्हें पता चला कि अनेकों कुष्ठ रोगी अपने अन्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। ये बेचारे सोचते रहते, अपनी दीन-हीन अवस्था पर कोसते रहते अपने भाग्य को कि किस पाप के परिणाम स्वरूप उन्हें यह नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है ? समाज और दुनिया से एक दम कटा-पिटा जीवन किसे रास आएगा ।

'काश' मेरी ने एक दीर्घ निश्वास छोड़कर मन ही मन कहा- मुझे इन लोगों के बीच रहकर सेवा करने का मौका मिले तो शायद इनमें आशा की ज्योति जला सकूँ । सभी ने रोका, कहीं कुछ पल्ले पड़ गया, तो जीवन बरबाद हो जायेगा । " बर्बाद और आबाद होने की परिभाषा बदलनी होगी। रोग किसे नहीं होते ? फिर सेवा करने से रोग हो भी जाय, तो भी शरीर का समुचित उपयोग तो हो सकेगा" - मेरी का जवाब था । और वह उन्हीं के बीच रहने लगीं। पहली बार इन कुष्ठ रोगियों को यह अनुभव-
हुआ कि इस दुनियाँ में हम लोगों से आत्मीयता जोड़ने के लिए भी कोई तो प्रयत्नशील है ।

आश्रम में आते ही उन्होंने रोगियों को पढ़ाने का प्रयास किया । कुछेकों ने प्रश्न किया। मेम साहबा अब हमें पढ़ लिख कर क्या करना ? दुनियाँ हमारे किस काम की है ? रीड का उत्तर था "भाइयों ! पढ़ने का असली उद्देश्य विचारों को आत्मसात करना है। भले ही हमारे अन्दर विचार करने की योग्यता न हो, फिर भी सत्पुरुषों के विचारों को ग्रहण करने से हम हर हालत में मस्त रह सकते हैं। विद्या का सही प्रतिफल भी तो यही है। निर्मल मन से निकली वाणी ने कोढ़ियों में उत्साह का संचार किया । वह उन्हें पढ़ाती, उनके साथ गाती उन्हें जीवन का मर्म समझाती, दवा दारू करती। इस कार्य के दौरान उन्हें भी कुष्ठ ने पकड़ लिया। मित्रों ने कहा- "हमने पहले ही सावधान किया था, अब भोगो परिणाम । "

"यह परिणाम नहीं वरदान है, अब मैं उन्हीं जैसी हूँ, पहले की अपेक्षा अधिक आत्मीयता स्थापित हो सकेगी। " उनकी दिनचर्या और अधिक व्यस्त हो गयी । जीवन

से निराश रोगियों में आशा जगी। जो थोड़े भी काम करने लायक थे- वह भी काम करने लगे। उन्हें जीवन का मर्म पता चला कि यदि चिन्तन उत्कृष्ट हो, सद्कर्म में निष्ठा हो, तो हर हाल में खुशी मिल सकती है। विचारों का दान देने वाली मेरी रीड को वह फरिश्ता देवदूत कहते। बात भी सही है- सद्विचारों को आत्मसात् करने-कराने का यह कार्य इसी स्तर का है। सेवा की देवी अपनी अन्तिम साँस तक अपने इसी कार्य में रत रहीं ।

motivational story in hindi.

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