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सुख और दुख का समय, गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी

सुख और दुख का समय, गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी 


एक दिन गौतम बुद्ध ने एक दुखी व्यक्ति को देखा। व्यक्ति बुद्ध के वरणों में गिरकर अपने दुख दूर करने का उपाय जानना चाहता था। गौतम बुद्ध ने उस व्यक्ति को अपने पास बिठाया और बोले, "तुम व्यर्थ में चिंतित हो रहे हो। सुख-दुःख हमेशा नहीं रहते, मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ, ध्यान से सुनो-

किसी नगर में एक सेठ रहता था। वह बड़ा ही उदार और परोपकारी था। उसके दरवाजे पर जो भी आता था, वह उसे खाली हाथ नहीं जाने देता था और दिल खोलकर उसकी मदद करता था।

एक दिन उसके यहाँ एक आदमी आया, उसके हाथ में एक परचा था, जिसे वह बेचना चाहता था। उसके परचे पर लिखा था, "सदा न रहे!" इस परचे को कौन खरीदता, लेकिन सेठ ने उसे तत्काल खरीद लिया और अपनी पगड़ी के एक छोर में बाँध लिया। नगर के कुछ लोग सेठ से ईर्ष्या करते थे। उन्होंने एक दिन राजा के पास जाकर उसकी शिकायत की, जिससे राजा ने सेठ को पकड़वाकर जेल में डाल दिया। जेल में काफी दिन निकल गए। सेठ बहुत दुखी था, क्या करे, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

एक दिन अकस्मात् सेठ का हाथ पगड़ी की गाँठ पर पड़ गया। उसने गाँठ को खोलकर परचा निकाला और उसे पढ़ा। पढ़ते ही उसकी आँखें खुल गईं। उसने मन-ही-मन कहा, 'अरे, तो दुख किस बात का! जब सुख के दिन सदा न रहे तो दुख के दिन भी सदा न रहेंगे।'

इस विचार के आते ही वह जोर से हँस पड़ा और बहुत देर तक हँसता रहा। जब चौकीदार ने उसकी हंसी सुनी तो उसे लगा, सेठ मारे दुख के पागल हो गया है। उसने राजा को खबर दी। राजा आया और उसने सेठ से " क्या बात है?" पूछा,
सेठ ने राजा को सारी बात बता दी। उसने कहा, "राजन्, आदमी दुखी क्यों होता है? सुख-दुख के दिन तो सदा बदलते रहते हैं। सुख और दुख तो जीवन के दो पहलू हैं। यदि आज सुख है तो हो सकता है कि कल हमें दुख का मुँह भी देखना पड़े। "

यह सुनकर राजा को बोध हो गया। उसने सेठ को जेल से निकलवाकर उसके घर भिजवा दिया। सेठ आनंद से रहने लगा; क्योंकि उसे ज्ञात हो गया कि सुख के साथ-साथ दुख के दिन भी सदा नहीं रहते।

कथा सुनकर व्यक्ति के मन का बोझ हल्का हो गया। उसने गौतम बुद्ध का आशीर्वाद लिया और अपने घर की ओर चल दिया।




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