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प्रेरणा का स्रोत-ममता का निर्झर माँ शारदा की कहानी story_of_maa_sharda

प्रेरणा का स्रोत-ममता का निर्झर-माँ शारदा की कहानी 
Source of Inspiration - Mamta Ka Nirjhar - Story of Maa Sharda
इस पीड़ा को महसूस करके ही श्री माँ शारदा-श्री रामकृष्ण की सहयोगिनी बनीं। उनके सहयोग के कारण ही दक्षिणेश्वर का काली मंदिर व्यक्तियों के गढ़ने की टकसाल के रूप में बदल गया । विवेकानन्द, अभेदानन्द, केशवचन्द्र सेन, गौरी माँ, अबोरमणि जैसे अनेकों चमचमाते व्यक्तित्व यहीं ढाले गए।

एक बार श्री रामकृष्ण ने उनकी ओर देख कर पूछा- क्यों जी मैं तुम्हें कुछ भी तो नहीं दे सका, तुम्हें दुःख तो नहीं होता' । जवाब था- मैं लेने नहीं, देने आयी हूँ।' आपके कार्य में सहयोग देना, उसे आगे बढ़ाना मेरा उद्देश्य है । और सचमुच उनमें कोई भौतिक चाह थी नहीं । दक्षिणेश्वर मंदिर में स्थित छोटे से नौबत- खाने को देखकर किसी को सहज में विश्वास भी न होगा कि किस तरह उसमें, वह और उनकी भतीजी रहती होगी ।
प्रातः से सायं तक उनकी अथक दिनचर्या प्रवाहमान रहती। अनेकों में स्नेह भर कर, प्राणों का संचार कर जीवन के प्रति खोये विश्वास को जगाती रहतीं। वह न होतीं, तो शायद रामकृष्ण मिशन का वर्तमान स्वरूप देखने को न मिलता। उन्होने ही अपने वात्सल्य के सूत्र में सभी को बांधा, एकत्रित हुओं में कुछ कर गुजरने की निष्ठा जगायी। उनकी इसी प्रखर प्रेरणा का महत्त्व गान करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरुभाई स्वामी शिवानन्द को लिखा था- 'तारक दा ! लगता है आप सब अभी माँ को नहीं समझ पाये। मैं कुछ-कुछ समझ रहा हूँ। उन्हीं की प्रेरणा व प्रकाश के बलबूते मैं यह सब करने में जुटा हूँ । हम सब कठपुतलियां हैं, सूत्रधार वही हैं'। विवेकानन्द की यह स्वीकारोक्ति, उनके प्रेरक, व मानवीय भावनाओं से सघन व्यक्तित्व को जाहिर करती है

परवर्ती दिनों में वह नारी शिक्षा के लिए चिन्तित रहा करतीं। निवेदिता द्वारा शुरू किए गए स्त्री-शिक्षा के कार्य के पीछे उन्हीं की सशक्त प्रेरणा थी। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा- "नरेन की बिटिया आई थी, उसको महिलाओं के कल्याण के लिए तैयार किया । उसके जुट पड़ने से मेरी चिन्ता मिट गयी।" शरीर न रहने पर भी उनकी प्रेरणा व संगठन-शक्ति, आज भी दिगन्त-व्यापी रामकृष्ण मिशन के संघबद्ध सेवा कार्यों के रूप में मूर्त हो रही हैं।

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