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देश की पहली महिला शिक्षक की कहानी, story of country's first female teacher.

 देश की पहली महिला शिक्षक की कहानी,
story of country's first female teacher.              
 

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले 3 जनवरी 1831 को सतारा मुंबई महाराष्ट्र में हुआ, 10 मार्च 1897 भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।
महिलाओं के अध‍िकारों, सतीप्रथा, छुआछूत और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों पर पुरजोर तरीके से आवाज उठाने वाली सावित्रीबाई को समाज में रूढ़ि‍यों की बेड़ि‍यां तोड़ने के लिए लम्‍बा संघर्ष करना पड़ा. आईए जानते है उनके जीवन के कुछ अहम पड़ाव के बारे में जो उनके जीवन उनके साथ बीती..

विवाह..
1840 में मात्र 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। उस समय वो पूरी तरह अनपढ़ थीं और पति मात्र तीसरी कक्षा तक ही पढ़े थे. पढ़ाई करने का जो सपना सावित्रीबाई ने देखा था विवाह के बाद भी उन्‍होंने उस पर रोक नहीं लगने दी. इनका संघर्ष कितना कठिन था, इसे इनके जीवन के एक किस्‍से से समझा जा सकता है।


इस घटना ने उनका जीवन बदल दिया..

एक दिन वो कमरे में अंग्रेजी की किताब के पन्‍ने पलट रही थीं, इस पर इनके पिता खण्डोजी की नजर पड़ी. यह देखते वो भड़क उठे और हाथों से किताब को छीनकर घर के बाहर फेंक दिया. उनका कहना था कि शिक्षा पर केवल उच्‍च जाति के पुरुषों का ही हक है. दलित और महिलाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करना पाप है। यही वो पल था जब सावित्रीबाई ने प्रण लिया कि वो एक न एक दिन जरूर पढ़ना सीखेंगी. उनकी मेहनत रंग लाई. उन्‍होंने सिर्फ पढ़ना ही नहीं सीखा बल्कि न जाने कितनी लड़कियों को शिक्ष‍ित करके उनका भविष्‍य संवारा, लेकिन यह सफर आसान नहीं रहा।
दलित होने का खामियाजा पत्‍थर और गंदगी से सामना हुआ पर रुकी नहीं पढ़ाई करने का प्रण लिया तो समाज के लोगों को यह बात नगवार गुजरी। एक दलित लड़की का स्‍कूल जाना समाज को कभी रास नहीं आया। इसी का नतीजा था कि सावित्रीबाई जब भी स्‍कूल जाती थीं तो लोग पत्‍थर मारते थे और कुछ लोग उन पर गंदगी फेंक देते थे. उन्‍होंने पति के साथ मिलकर इतिहास रचा और लाखों लड़कियों की प्रेरणास्रोत बन गईं, खुद भी पढ़ाई पूरी की और लड़कियों के लिए 18 स्‍कूल खोले ताकि कोई और अनपढ़ न रह सके। साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की। वहीं अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था। 

एक विधवा के पुत्र को अपनाया और डॉक्‍टर बनाया, सावित्रीबाई ने शिक्षा के लिए संघर्ष करने के साथ कुरीतियों के खिलाफ भी उठाई। छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के खिलाफ विरोध जताया। जिस समाज से उन्‍हें सिर्फ ताने मिले उसी समाज की एक लड़की की जिंदगी बचाई। एक दिन विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई आत्‍महत्‍या करने जा रही थी, वो गर्भवती थी। लोकलाज के डर से वो आत्‍म्‍हत्‍या करना चाहती थी, लेकिन सावित्रीबाई ने अपने घर पर उसकी डिलावरी कराई। उसके बच्‍चे का नाम यशवंत राव रखा गया. यशवंत को उन्‍होंने अपना दत्‍तक पुत्र बनाया और परवरिश की। यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया।






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