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सच्चा मनुष्य कोन है? | सद्गुरु कबीर वाणी



साखी > मानुष है के ना मुवा, मूवा सो डॉगर ढोर ।

एको जीव ठौर नहीं लागा,भया सो हाथी घोर ।।

शब्दार्थ > डॉगर ढोर= डांगर ढोर , गाय, भैस पशु । ठौर= स्थिति, स्वरूपस्थिती, शांति। घोर= घोड़ा।

भावार्थ > मनुष्य ने मानवीये बुद्धि एव मानवता के आचरण धारण करके जीवन नही बिताया, किंतु पशु बुद्धि एवं पशु  आचरण करके मरा। इसलिए ऐसे में से एक जीव भी अपनी आत्मस्थिति एव निजस्वरूप की स्थिति न पा सका, बल्कि हाथी घोड़े आदि पशु स्वरूप का बनकर चला गया। अथवा मरकर हाथी घोड़े आदि पशु खानियो में गया ।अथवा "मानुष है के ना मुवा" जो व्यक्ति मानवीय बुद्धि एव मानवीय आचरण धारण किया, वह मरा नहीं, किंतु अमरत्व को पा गया। मरता तो वह है जो पशुबुद्ध वाला देहाभिमानी है।ऐसे जीव स्वरूपस्थिति न पाकर हाथी घोड़े आदि पशु होते है।।



सद्गुरु कबीर वाणी,

Sadguru Kabir vani.

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