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हम यहां जानेंगे हमारी खुशियों का ठहराव कहा है।



जीवन में हर कोई खुश रहना चाहता है, चाहे वो खुशी
उन्हें कैसे भी मिले। लेकिन बहुत कम ही जान पाये है,
की खुशियां मिलती नही है, वो हमारी सोच में होती है।आप जीवन के कुछ पन्ने पलटकर देखे, आप कब खुश
हुए थे। आप जान पाएंगे की हर सुख -दुख के पल में
परिस्थितियां व नजरिया मायने रहा होगा।
1) उदाहरण> जैसे मौसमी बारिश होने पर खुशी देती है,
वैसे ही अगर बेमौसमी बारिश हो या हम कही समुन्द्र
तट पर धूप के आनंद ले रहे हो, तब बारिश हो तो
हमें बेकार लगती है, और दुखी जैसा माहौल बन
जाता है।
2) उदाहरण> जैसे हम जंगल देखने जाते है, तो
वहा कीड़े मकोड़े, पशु -पक्षियों की आवाज, पेड़ -पौधो
का आपस में गुत्थम -गुत्था, चोरों तरफ हरियाली ये
सब देखकर हमे खुशी होती है।
मतलब की जंगल से हमे कीड़े मकोड़े, पशु पक्षी की
आवाजे, हरियाली ये सब मिलने की अपेक्षा रहती है।
अगर हमे जंगल में, ये सब ना मिलकर सब सुखा
मिले तो हमे दुख होगा। 
मतलब की खुशी का ठहराव जंगल से नहीं है,
जंगल से जुड़ी अपेक्षाएं खुशी की वजह है।
कहने का मतलब है की खुशियों का ठहराव हमारी
अपेक्षाओं में है।

हम खुश कैसे रह सकते है > ये हम दूसरी पोस्ट
में जानेंगे की हम खुश कैसे रह सकते है।

मैं आशा करता हूं की आप हमारी पोस्ट से सहमत
होंगे।अगर हो तो please हमे Comment में बताएं।
🙏 धन्यवाद 🙏

1 टिप्पणी:

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