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विश्वास की समझ

ज्यादातर धार्मिको ने संसार को समझने के लिए विवेक बुद्धि
का नही, अपितु भावुकता एवं श्रदा का सहारा लिया है। 
इसलिए संसार के बारे में उनका दृष्टिकोण एवं चिंतन सत्य 
से बहुत दूर चला गया है। वस्तुत संसार को समझने के लिए
हमे संसार में ही झांकना होगा। संसार जड़ तत्वों के
असख्यात परमाणुओं का सव्युहान है। जड़ द्र्वो की 
स्वभावसिद्ध गतिशीलता से ही यहां नानाविध वस्तुओ के 
उत्पाद विनाश अनवरत होते रहते है और इस प्रकार संसार 
आबाद गति से निरंतर चल रहा है। दृश्यों के स्वयं सिद्ध गुण 
धर्मो को न समझकर उनके संचालन के लिए पृथक सुप्रीम 
सता की कल्पना करना वस्तु तथ्य एवं सत्य से दूर हो जाना 
तथा अंधकार में हाथ पैर मरना है। जड़ द्रव्यों की न तो किसी 
काल विशेष में नए सिरे से सृष्टि होती है और नही प्रलय। 
संसार सृष्टि प्रलय से रहित अनादि अनंत है। कबीर साहेब की 
दृष्टि में संसार मन का प्रतिबिम्ब एवं गंधर्व नगर की भाती 
असत्य न होकर अपने क्षेत्र में ठोस एवं सत्य है। हां, संसार से 
हमारा संबंध ओपाधिक एवं स्वपनवत अवश्य है। इसलिए 
कबीर साहेब ने कहा है
झूठ झूठा कै डारहूं, मिथ्या यह संसार।
तेहि कारण मैं कहता हौ, जाते होय उबार।।

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