Header Ads

जीवन को देखना ही सही ढंग से जीना है - motivational-thoughts

जिंदगी पिंजरे में कैद परिंदो की तरह है। जैसे किसी भाग्य में लिखा हो की पिंजरे तो एक से एक बडकर एक मिलेंगे। चांदी का हो सकता है सोने का हो सकता है, बड़ा हो सकता है, लेकिन उड़ने के लिए खुला आसमान नही मिलेगा। हमारा जीवन भी ऐसा ही है। कभी घर परिवार की जिम्मेदारी, कभी नोकरी धंधे की परेशानी, कभी समाज के प्रति दायित्व बोध, ये सब हमारे पिंजरे है और इन्हें के भीतर रहते हुए हमें मौज भी बचाएं रखना है। क्योंकि खुशियों के बिगेर जीवन जीना अधूरा सा लगता है। लेकिन हम अपनी जिम्मेदारियों में इतना फसे होते की हम इनको पिंजरा मान लेते है और खुद को इसमें रहने वाला जीव। बस यहां हमें अपने विवेक को काम में लेना है। जैसे अब चींटी से कुछ सीखा जाए। बात लगती तो थोड़ी अविशस्निये है, पर विवेक से वहा भी कुछ सीखने को मिलता है। क्योंकि चींटी अपने वजन से तीन गुना भार उठा सकती है। बस यहां हमे सोचना है जब एक छोटी सी चींटी दिनभर में अपने वजन से जायदा भार उठा सकती है तो मनुष्य क्यों कोई भी काम कर नही सकता। मनुष्य में विवेक की पावर होती है वो छोटे से दुख को भारी बना सकता है और बड़े से बड़े दुख को हल्का बनाकर आगे बड़ सकता है। इसलिए दिन भर में एक या अनेक बार अपने जीवन को देखना जरूर बनता है। जीवन को देखा जा सकता है। इस मामले में जिंदगी आइना एक जैसी है। आईने को बहुत पास से देखे तो कुछ नही दिखता और उसे थोड़ा दूर से देखे तो साफ नहीं दिखता। इसलिए सही देखने के लिए निश्चित दूरी जरूरी है चेहरे और दर्पण के बीच। ठीक ऐसा ही जीवन के साथ है। यहां भी एक निश्चित दूरी बनाएं शरीर और आत्मा के बीच। क्योंकि इन दोनो के बीच होता है मन। बस इसे विवेक के द्वारा समझे। इसी से हमें हर चीज बंधन लगती है, पिंजरा लगता है, और हम इसके अंदर घिरे हुवे लगते है। जब हम इसको समझ लेते है तो हमारे लिए कोई काम भारी नही लगता है। और वही जीवन को देखना ही सही ढंग से जीना है।

1 टिप्पणी:

Thanks for feedback

Blogger द्वारा संचालित.