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जीवन को समझने का सही ढंग।



जिंदगी के प्रति बहुत से लोग इस तरह का नजरिया बताते 
मिल जाएंगे,
मेरी किस्मत बेकार है।
पता नही मेरी किस्मत में भगवान ने क्या लिखा है।
जो सोचता हु, जो करता हु वो मुझसे दूर हो जाता है।
मेरे जागने से पहले मेरी किस्मत सौ जाति 
है, मैं देर करता नही, देर हो जाती है। 
यह अपने पक्ष में दी गई दलील और जीवन को कोसने का 
एक तरीका है। तो फिर जीवन को समझने का सबसे सही 
ढंग क्या हो सकता है?,  ध्यान रखिए,  जन्म अलग बात है, 
मृत्यु अलग बात है।
लेकिन  इनके बीच  जो घटता है,  उसका नाम है जीवन। 
जीवन को जानना  और समझना हो तो, थोड़ा अध्यात्मक 
का सहारा लेना पड़ता है। अभी हम खुद के प्रति स्वार्थी है, 
जाग्रत नही है।  

हमारा सारा होश  करियर, पद -प्रतिष्ठा ,
दौलत, कार, बंगला, जीवन को ऐशो - आराम से जीना, 
इन सबके  प्रति है।  हम थोड़ा  और आगे बढ़ जाए तो
भोग -विलास,  दूसरो की  बराबरी करना,  ये सब इनमे 
शामिल हो जायेंगे। हम सारे प्रयास इन्ही के लिए करते है। 
बहुत कम होंगे जो दिनभर में कुछ समय स्वयं को जानने 
की कोशिश में लगाते होंगे। 

आध्यात्मिक के लिए शुरुवात 
होगी योग से।  योग करने से  परमात्मा मिलेगा या नहीं 
 मिलेगा, इस सवाल का उतर छोड़ दीजिए।  हां,  आप 
अपने आपको जरूर मिल जायेंगे। हम कोन है?  जिस 
दिन इसका उतर हमे मिल जाए बस उस दिन जीवन में 
परमात्मा का प्रवेश हो जाता है।

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