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प्रतिक्रिया देने की जल्दबाजी न करें।

हमारे काम करने का तरीका बदल गया है। लोग ऑलवेज 
ऑन कल्चर अपना रहे है। नियोक्ता अपने कर्मचारियों से 
हमेशा पहुंच में रहने और उतरदायी रहने की उम्मीद रखता 
है। शोध बताते है की लगातार कनेक्टिविटी बने रहने से 
प्रोडक्टिविटी घट जाती है। स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाला 
व्यक्ति दिन में 150 बार फोन देखता है। केवल एक मैसेज 
की वजह से उसकी रोज के कामों में गलती की गुंजाइश 
बढ़ जाती है और दोबारा फ्लो में लोटनें में समय लग जाता 
है। तकनीक के नकारात्मक प्रभावों का एक संतुलन बैठाने 
के लिए नियोक्ता पॉजिटिव डिजिटल कल्चर अपनाने की 
शुरुवात कर सकते है।

1> दिमाक़ को रिचार्ज करने की शांत जगह दें।
ऑफिस में ही कर्मचारियों के लिए एक ऐसी जगह निकली 
जा सकती है जहा वो अपने काम और डिवाइस से ब्रेक 
लेकर कुछ देर तक एकांत में बैठकर सोच विचार कर सके।
इस तरह का टाउन टाइम मिलने से कर्मचारी को अपने 
डिफॉल्ड मोड़ नेटवर्क को एक्टिवेट करने में मदद मिल जाति
है। इस तरह उन्हें नए आइडियाज भी हासिल हो सकते है।

2> प्रतिक्रिया देने की जल्द बाजी ना करें 
ज्यादातर कर्मचारी अपने नियोक्ता को तुरंत ही जल्दी में 
रहते है। फिर चाहे वो बातचीत काम के बाद हो या विकेंड,
या फिर छुट्टियों के दौरान। लीडर्स चाहे तो अपने कर्मचारियों 
के लिए पूरी तरह से सकारात्मक डिजिटल माहौल पैदा कर 
सकते है। इसके लिए उन्हें एक पॉलिसी बनानी होगी की कब 
और कैसे अपने कर्मचारियों से प्रतिक्रिया की उम्मीद की 
जाती है।
3> फॉक्स टाइम को ब्लाक करना बताएं
बहुत से कर्मचारियों को लगता है की अपना काम करने के 
लिए उन्हें निरंतर समय नहीं मिल पाता है। कर्मचारियों को 
अपने लिए 1 घंटा भी मिल जाते है तो वो ज्यादा ऊर्जावान,
दोस्ताना, मझेदार, और स्मार्ट होते है। कर्मचारियों को ज्यादा 
से ज्यादा से प्रोडक्टिव बनाने के लिए कैलेंडर पर उन्हें 
"फॉक्स टाइम" ब्लॉक करने के लिए प्रोत्साहित किया जा 
सकता है।

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