भीतर चक्र ऊर्जा के सात फेरे हो तो मनुष्य सचमुच मनुष्य हो जायेगा।
अब वो न नैन रहे जो शर्माते थे, न वे होठ जो मुस्कुराते थे
और न ही वह देह रही जो प्रणाम भाव में किसी के आगे
झुक जाती थी। अब तो लगता है आदमी बिजुका
( परिंदो को डराने भगाने के लिए खेत में खड़ा किया गया मनुष्य का पुतला ) हो गया है। हमारे शास्त्रों में सात फेरे के
बारे में खूब लिखा है। जब भी सात फेरो की बात आती है,
लोगो का ध्यान विवाह में चला जाता है। लेकिन ऋषि मुनि
कह गए है साथ फेरे हमे प्रतिदिन अपने भीतर लेने चाहिए।
इसका मतलब है
दीनभर में कम से कम एक बार अपनी
ऊर्जा को अपने भीतर के सात चक्रों पर जरूर घुमाए।
संत महात्मा हमे मार्ग बता सकते है, मंजिल को पाने के लिए हमे ही प्रयास करना है।
जब हम सात चक्रों में फेरे लगाते है,
यानी अपनी ऊर्जा घुमाते है तो वासना ऊपर उठकर प्राथना
बन जाती है और अगर प्राथना नीचे गिर जाए तो वासना
बन जाती है। इसी वासना पर विजय पाने के लिए सूर्य
नमस्कार की विधि निर्मित की गई है। यह एक ऐसी आसन
पद्धति है जो केवल सूर्य की उपासना नही है। झुकना,ऊपर
देखना, ललीचा बनना और शीघ्र परिवर्तन में पूर्णता निकाल
लेना, ये खूबियां है इसकी। बाहर इस तरह के आसन हो,
भीतर चक्र ऊर्जा के साथ फेरे हो तो मनुष्य सचमुच मनुष्य
हो जायेगा। वरना जीवन तो अपने तरीके से पशु भी गुजार
लेते है।
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