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जिसे हम अपना मानते है वह अपना नही है।

संत श्री गुलाबदास जी कहते है
हम लोग बड़ी गलती कर रहे है। जो वस्तु अपनी नहीं है।
उसको अपनी मान बैठे है। शरीर अपना नहीं है और
जमीन जायदाद भी अपनी नहीं है। यह सब भूमि तत्व
है। अपना शरीर, परिवार और दूसरी सब चीजें भूमि का
भाग है। उसमें नफा होता है तो हम खुशी मनाते हैं और
घाटा होता है तो हम रोते हैं। क्या यह भी कोई जीवन है,
क्या हम सत्संगी कहलाने के लायक है ? यह एक बड़े
आश्चर्य की बात है कि यद्यपि शरीर का एक बाल भी
हमारी अपनी तरफ से बनाया हुआ नहीं है फिर भी हम
सब चीजों के धनी (मालिक) बनते है। इसका फल यह
होता है कि हमारे सब के धनी (रामजी) हम से दूर जाते
है। उनकी हम परवाह नहीं करते। वे हमारी सब प्रकार से
रक्षा करते हैं, हमारा पालन करते है इसलिए कि यह सब
कुछ उनका है। उनकी वस्तुओं के धनी बनने से ही हमारा
नाश होता है और हमारा चौरासी का टिकट कटता है
जिस प्रकार पड़ौसी के हानि-लाभ से हमको न शोक
होता है, न हर्ष, उसी प्रकार हमारे अपने हानि-लाभ के
बारे में भी हम को तटस्थ रहना चाहिए क्योंकि जिस
प्रकार पड़ौसी की वस्तु अपनी नहीं उसी प्रकार जिसको
हम अपनी कहते हैं वह भी वास्तव में अपनी नहीं है
सभी वस्तु प्राणनाथ की है और प्राणनाथ हमारे  है।
शरीर में कोई रोग हो तो बिल्कुल भय नहीं मानना
चाहिए। क्योंकि शरीर प्राणनाथ का है, अपना नहीं। जिस
प्रकार बहिन-बेटी को दी हुई वस्तु के हम मालिक नहीं
बनते परन्तु उस वस्तु को सम्भालकर जरुर रखते हैं, उसी
प्रकार यह जो कुछ है भगवान का मान कर संभालना
चाहिए। वस्तुएं अपनी मानोगे तो जीवन बेकार हो
जायगा और यदि भगवान की मानोगे तो जीवन धन्य
हो जायगा। हमे प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रभु जैसा भी हूँ आपका हूँ।

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