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आदतें अच्छी होती है, लेकिन महारत के लिए काफी नही होती।



आदतें महारत की नीव तैयार करती है। शतरंज में जब मोहरे 

चलाने की बुनियादी कला स्वचालित होने लगती है, तब ही 

कोई खिलाड़ी खेल के अगले पायदान पर देख सकता है। हर 

सूचना जो स्मृति में रहती है वह मानसिक खुलापन लाती है। 

हर काम के लिए यह बात सही है। सरल चाले आप इतने 

अच्छे से जानने लगते है की आप बिना सोचे उन्हे चल देते है। 

आपको ध्यान देने की आवश्कता भी नही पड़ती । ऐसे में 

आप ज्यादा विस्तृत चीजों की और ध्यान देने के लिए स्वतंत्र 

हो जाते है। इस तरह आदतें उत्कृष्टता की मेरुदंड होती है। 

हालाकि आदतों का फायदा किस कीमत पर मिलता है? 

पहले तो हर दोहरा लेने से उनमें निपुणता, गति और कौशल 

बढ़ता है, लेकिन जैसे ही आदतें स्वचालित होने लगती है, 

आप फीडबैक के प्रति काम संवेदनशील हो जाते है। आप 

बिना दीमाक लगाए इसे दोहराते है। ऐसे में गलतियां होने 

लगती है। जब आप इसे "ऑटो पायलट मोड़" में बहुत अच्छे 

से करने से लगती है, तो बेहतर करने के बारे में सोचना ही 

बंद कर देते है। आदतों का अच्छा पहलू ये है की आप इन्हे 

बिना सोचे कर पाते है। और इनका कमजोर पहलू यह है की 

आप एक तय विधि में करते है और छोटी गलतियों पर ध्यान 

नही दे पाते है। पर जब आप अपनी संभावनाएं बढ़ान के 

साथ अपने प्रदर्शन को उच्चस्तरीय बनाना चाहते है, तो 

बारीक-बारीक चीजों को देखना होता है।


जेम्स किल्यर,

विख्यात लेखक ।।

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