श्रीराम और भारद्वाज ऋषि का यह वाक्य हमे सहजता से जीना सिखाता है।
श्री राम और भारद्वाज ऋषि के इस वाक्य से विपरीत स्थिति में भी सहजता से जीना सीखे।
जीवन में हर समय हमारी मर्जी नही चलती। बहुत कुछ ऐसा
होता है जो अपने आप घटता है। खासकर जन्म और मृत्यु
इन दोनो के बीच हम कर्ता होते है।
लेकिन याद रखे कर्मयोग में पागलपन ना उतारे। जो करे,
पूरी ताकत से करे और जो उसके बाद भी जो घाटे उसे घटने
दीजिए। जब जन्म पर हमारा बस नही है अत: मृत्यु हमारे
हाथ में नही है तो फिर मध्य यानी जीवन हमारे वश में कैसे
हो सकता है। लेकिन इसी जीवन में हमे काम भी करना होता
है। शास्त्रों में इसे कहा है श्रम रहित कर्म करना। मतलब
सहजता से जीवन जीना। श्री राम भी ऐसे ही करते थे।
हनुमान जी को भारत के पास बेजने के बाद जब वह
भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गए तो यहां लिखा गया_
नाना विधि मुनि पूजा किन्ही।
अस्तुति करी पुनि आसिश दिन्ही।।
भारद्वाज जी ने अनेक प्रकार से रामजी की पूजा स्तुति की
और फिर आशीर्वाद दिया। यहां गजब की बात आई है की
जिनकी स्तुति की जा रही है, उन्ही को आशीर्वाद भी दिया
जा रहा है। किसी और के साथ ये तीन बाते
पूजा, स्तुति, आशीर्वाद होने लगे तो वह बावला हो जाए,
लेकिन रामजी ने इसको बहुत सहजता से लिया। इसे कहते
है सत्य की स्वीकृति। जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जो घटेगा
ही। पूजा करना और आशीर्वाद भी देना जीवन का विपरीत
है, और विपरीत में भी सहजता से जीना राम सीखते है।
और हमें जीने की राह मिलती है।
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