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"मैं" को हराने के लिए योग का सहारा ले।

ज्ञान के माता पिता प्रशन होते है। इनमे भी प्रशन पिता और 
उतर माता है। जीवन में प्रशन उतर जितने अधिक सुलझे 
हुए होंगे, ज्ञान उतना आसानी से और परिपक्व रूप में 
आएगा। चुकी यह शिक्षा का दौर है तो ज्ञान तो अर्जित करना 
ही चाहिए, लेकिन अपने बच्चो को यह भी यह समझाइए की 
बहुत अधिक झुगली नहीं की जाए। आवश्यकता से अधिक विचार उठने वाले यदि समय पर नहीं रोक गए तो खतरनाक 
हो जाते है। उदासी और डिप्रेशन का कारण बन जाते है। 
इसलिए कई बार पढ़े लिखे लोग उदास पाए जाते है, अवसाद 
में डूबे दिखते है। कुछ समय विचारो को रोकना, जीवन में 
एक शून्यता लाना योग से संभव है। पढ़े लिखो, ज्ञानियों के 
साथ एक दिक्कत यह भी हो जाती है की वे 24 घंटे ही पढ़े 
लिखे बने रहते है। जबकि येदी शांति प्राप्त करनी हो तो 
कुछ समय ज्ञानशून्य भी होना पड़ेगा। ज्ञान को अर्जिन को 
रोका नहीं गया तो हम कोई पुस्तक पढ़कर भी पुस्तक नही 
पढ़ेंगे, उसमे खुद को पड़ेंगे। यही से हमारा मैं हावी हो जाता 
है।ज्ञानियों को अहंकार होता ही इसलिए है की मैने पढ़ा है,
मैं अधिक जनता हूं। फिर ये ही "मैं" उन्हे उदासी में पटक 
देता है। तो इस मैं को गिरान के लिए शून्य में उतरना पड़ेगा 
और शून्य में उतरने के लिए युग ही एकमात्र मार्ग गई।

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