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श्री राम की शैली में काम करें। Motivational Thoughts in hindi



मुरादो की झोली पूरी तो कभी किसी की नही भरती, लेकिन 

नियत साफ है तो खाली भी नही रहती।  श्री राम  की नियत 

साफ थी। वे जितने भीतर से निर्मल थे, उतने ही बाहर से भी 

साफ मन के थे। जब अयोध्या के निकट पहुंचे तो उन्होंने 

हनुमानजी से कहा 



"प्रभु हनुमतही कह बुझाई, धरी बटु रूप अवधपुर जाई। 

भरतही कुसल हमारी सुनाएहू, समाचार लै तुम्ह चली आएहू।।

तुम भह्मचारी के वेश में जाओ और देखो भरत की क्या स्थिति 

है। फिर उनको हमारी कुशलक्षेम सुनाना और उनका समाचार 

लेकर लोट आना।  यहां तीन बाते सामने आती है - 

संदेह, सावधानी और स्वीकृति। 

संदेह > श्रीराम को भरत पर संदेह नहीं था, 

लेकिन वे हालत के विज्ञान को जानते थे। सता के आसपास 

का वातारण अविश्वसनीय होता ही है। 

सावधानी दूसरी बात, वे इसे लेकर बहुत सावधान थे की भरत कही आहत न हो जाए ।

 स्वीकृति तीसरी बात, उनमें एक सहज स्वीकृति थी की जो भी परिस्थिति होगी, उसे स्वीकार करूंगा। जब भरत चरण 

पादुका लेकर आए थे तो श्रीराम ने राजधर्म सीखते हुए कहा 

था अपने आसपास रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कोई काम 

जरूर देना। इसलिए उन्होंने वानरों को भी बहुत अच्छे से 

काम पर लगाया था। आज हमारे सिस्टम को भी चाहिए की 

जिस देश में चार करोड़ युवा बेरोजगार हो, वहा रोजगार के 

नए मंदिर बनाते हुए श्रीराम की शैली में काम करे की मेरे 

साथ रहने वाले का हर हाथ काम पर लगा हो।

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