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संतोष की नीव पर महल बनाएं | motivational Thoughts in hindi



पलको  के पर्दों में दृश्य  भर लेने  से दुनिया  की कोई चीज 

हमारी नही हो जाती। इस तरीके से कल्पनाशीलता जागती 

है, सपने  सजोए जाते है, लेकिन उनको पूरा करने के लिए 

परिश्रम, समर्पण ये सब जरूरी है। संकल्प लो, सपने देखो 

उन्हें पूरा करो। ऐसी कई बाते आजकल के प्रबंधन के क्षेत्र 

में दिखाई जाती है। सुनने में ये बहुत अच्छा लगता है, लेकिन 

इस यात्रा से गुजरे है। कभी उनसे पूछे तो पता चलेगा उन्होंने 

कितनी तकलीफे उठाई होंगी। जिनके सपने पूरे हो गए, वे भी 

अशांति के ज्वालामुखी पर बैठे है। शास्त्रों में एक बात कही 

गई है की महत्वकांक्षा व संतोष एक साथ कैसे चल सकते है। 

आधुनिक  प्रबंधन  की दृष्टि से देखे तो  यह बात ही खारिज 

करनी पड़ेगी की जो संतोषी हो गया वह महत्वकांक्षी नही हो 

सकता  और जिसकी  महत्वकांक्षाb जागी, उसे संतोष नहीं 

रखना  नही  चाहिए। लेकिन  हमारे  पौराणिक पात्र  ऐसे है 

जिन्होंने अपनी महत्वकांक्षा को भी जीवत रखा और संतोष 

भी बचाए रखा। यदि संतोष के साथ महत्वकांक्षा पा ली जाए 

पूरी की  जाए तो  परिणाम में  सफलता के साथ  शांति भी 

मिलेगी।  संतोष हमारे परिश्रम,  सफलता की यात्रा में बधा 

नही है। लोग संतोष को बाधा मान लेते है पर शांति के लिए 

यह खाद का काम करता है। 



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