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जीवन में चूक मत करो



दोहा > मानुष जन्म नर पायेके, चुके अबकी घाट। 
           जाए परे भवचक्र में, सहे घनेरी लात ।। 

भावार्थ > जीव ने विवेक प्रधान मानव जन्म को पाकर भी 
यदि ऐसे सुनहरे अवसर में स्वरुपज्ञान एवं स्वरूप स्थिति का 
काम नही किया और इस महत्वपूर्ण अवसर को व्यर्थ खो
दिया तो वह जाकर पुन: जन्म मरण के चक्कर में पड़कर 
असमीति दुख भोगता रहेगा ।।

मनुष्य जीवन बहुत मूल्यवान है। हम अपने 
जीवन के अवसर में धन कमा सकते है, किंतु धन देकर 
जीवन के बीते अवसर को लौटा नही सकते। इसी प्रकार हम 
जीवन के अवसर में परिवार,विधा,प्रतिष्ठा,शासन,अधिकारादी 
संसार के सारे ऐश्वर्य को प्राप्त कर सकते है, परंतु उन सबसे 
जीवन के बीते अवसर को पुन: लौटा नही सकते। 
हम जीवन में जो कुछ पाते है वे अंत छूट जाते है। परंतु यदि 
हमने अपने जीवन में आत्मज्ञान एवं आत्मस्थिति की प्राप्ति 
की, तो ये कभी छूटने वाली वस्तु नही है और इसी में हमें 
परम सुख एवं परमशांति मिलती है। विवेकप्रधान एवं मोक्ष 
साधन करने योग्य मानव शरीर को पाकर यदि हमने यह काम 
नही किया और इस। सुनहरे अवसर में यदी हम जीवनभर 
ईंट पत्थर और संसार के अन्य सारे क्षणभगुर पदार्थ बटोरते 
रहे तो हमने क्या समझदारी का काम किया। जिस जीवन में 
हमे अनंत मोक्ष, अनंत शांति, एवं अनंत सुख की प्राप्ति हो 
सकती है, यदि उसे हमने मलिन भोगों में बिताया, तो हम 
जैसा मूर्ख कोन होगा। हम स्वपनवत सांसारिक प्राणी पदार्थों 
के मोह लोभ में उलज कर अपने कल्याण साधना करने योग्य 
दांव को जाते है और हम जीवन में हार जाते है।

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